महाभारत का युद्ध समाप्ति की ओर था, भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर थे, इच्छा मृत्यु का वरदान होने के कारण उनके प्राण अभी भी शेष थे ऐसे में उन्होंने अंतिम उपदेश देने के लिए पांडवों को अपने समक्ष बुलवाया, उपदेश के अंतिम चरण में भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था ...
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पैर लग गया हो वह भोजन की थाली विष्ठा के समान होती है ....!
भीष्म पितामह ने कहा कि अगर पति और पत्नि एक ही थाली में भोजन कर रहे हों तो उनका प्रेम एक मद के रूप में उस भोजन में आ जाता है। किसी तीसरे व्यक्ति को उस भोजन में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। यह उसके लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। हालांकि पति और पत्नि के लिए एक ही थाली में भोजन करने से प्रेम तो बढ़ता ही है और दोनों के लिए यह भोजन चारों धाम का पुण्य फल प्राप्त करने के समान होता है।
और सुनो अर्जुन .....
पुत्री अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ....क्योंकि पुत्री पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए कन्या जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें ......
पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे" .....
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