बुधवार, 2 मई 2018

श्री धरणीधर मंदिर, ढीमा ; Shri Dharnidhar Temple, Dhima

श्री धरणीधर मंदिर, ढीमा 



उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले की वाव तहसील के ग्राम ढीमा में स्थित भगवान धरणीधर का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के लिए तीर्थ स्थान है, यह थराद कस्बे से 15 तथा पालनपुर शहर से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, लगभग 800 वर्षों से भी अधिक पुराना यह राजसी मंदिर भगवान धरणीधर जो भगवान विष्णु का रूप हैं को समर्पित है तथा उनकी चमत्कारी मूर्ति के कारण ना केवल गुजरात बल्कि राजस्थान के भक्तों के बीच भी बेहद लोकप्रिय है, भगवान का यह स्वरुप मूल रूप से राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में पाया गया था, ऐसी मान्यता है की केड समुदाय के एक कनबी को सपने में भगवान की यह मूर्ति दिखी, सुबह उठकर उनसे अपने सपने के बारे में लोगों को बताया और सपने में दिखी जगह पर लोगों को ले गया, जहाँ वास्तव में यह मूर्ति थी, ग्रामीणों ने पुजारियों को सूचित किया और धूम-धाम के साथ भगवान की मूर्ति को ढीमा में मंदिर बनाकर प्रतिष्ठित किया गया, इस मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक कहानियाँ प्रचलित हैं:- 

सौराष्ट्र के जेतपुर के राजा ने अपने राज्य में एक मंदिर का निर्माण करवा कर भगवान धरणीधर की मूर्ति को वहाँ स्थापित करने की नाकाम कोशिश की थी भगवान के एक भक्त गदाधरजी ने इसका विरोध किया तो राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया, तब भगवान ने स्वप्न में आकर राजा को अपने भक्त को परेशान ना करने तथा उसे मुक्त करने का आदेश दिया, इसके बाद गदाधरजी भगवान की मूर्ति के साथ वापस ढीमा लौट आये। 

वाव के राणाजी की पत्नी रानी रंगाबाई की कहानी भी इस मंदिर से जुड़ी हुई है, एक बार राणा ने अपनी पत्नी के चरित्र पर ऊंगली उठाई तो रानी ने स्वयं को पतिव्रता साबित करने के लिए भगवान धरणीधर की शरण ली थी, लगातार छः दिनों तक रानी ने निर्जला रहकर भगवान से प्रार्थना की थी, अचानक भगवान की मूर्ति हिलने लगी और उनके तथा रानी के पैरों के पंजो के नीचे से पानी की धाराएं निकलने लगी, राणा को सूचित किया गया तब उन्होंने अपनी पतिव्रता पत्नी और भगवान से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी। 


यह भी माना जाता है, कि अपने मामा कंस का वध करने के बाद द्वारिका जाने के लिए निकले श्री कृष्ण मार्ग में ढीमा से होकर गुजरे थे, उन्होंने अपने साथ आये नन्द बाबा से यहाँ कुछ देर रूककर विश्राम करने की अनुमति भी मांगी थी, इस प्रकार  यह पवित्र स्थान भगवान श्री कृष्ण की उपस्थिति का साक्षी है। 



जब अलाउद्दीन खिलजी भारत आया था तो उसने एक बार इस गांव का दौरा किया था, तथा धार्मिक कट्टरवाद से प्रेरित होकर उसने भगवान की मूर्ति को नष्ट करने का प्रयास किया था, लेकिन ठीक उसी समय एक चमत्कार हुआ था, मधुमक्खियों के एक बड़े से झुण्ड ने मूर्ति के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बना दिया था, इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी नाकाम रहा। 


हर पूर्णिमा विशेषकर कार्तिक पूर्णिमा, धुलेड़ी और निर्जला एकादशी के दिन यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है, दूर-दूर से पद यात्री मंदिर के निकट स्थित मादला झील में स्नान करके भगवान के दर्शन और पूजन का लाभ लेते हैं। 


धरणीधर मंदिर के समीप ही भगवान विष्णु के आसन शेषनाग का भी मंदिर है जिन्हे यहाँ ढेमनाग के रूप में पूजा जाता है, धरणीधर मंदिर के प्रांगण में माता लक्ष्मी, भगवान शिव, भगवान गणेश तथा हनुमानजी के मंदिर भी स्थित हैं।  


यहाँ भगवान को भोग लगाए जाने वाले लड्डुओं को प्रसाद के रूप में बोलने में असमर्थ या हकलाने-तुतलाने वाले बच्चों को खिलाया जाता है, जिससे उनकी ये समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं। 


यहाँ पर तुलादान का भी बहुत महत्त्व है, लोग अपने वजन के बराबर अन्न (बाजरा), गुड़ तथा सोना-चांदी (यथा-शक्ति) का दान करते हैं, जिसका चौथा भाग मंदिर के पुजारी को दिया जाता है तथा शेष बाजरा हो तो पक्षियों को तथा गुड़ गौशाला में गायों को खिलाने के लिए दान कर दिया जाता है।  

तो दोस्तों ये थी भगवान धरणीधर के धाम की कुछ विशेष जानकारियां आशा है आप लोगों को अवश्य ही पसंद आएगी, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ये जानकारी share करके पहुंचाएं ताकि अन्य लोग भी इसका लाभ ले सकें।


|| जय धरणीधर भगवान  || 
|| जय श्री कृष्ण || 


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