गुजरात की धरती पर मंदिरों और धामों का खासा महत्व है , इन्ही में माँ आशापुरा का धाम जिसे “माता ना मढ” के नाम से
भी जाना जाता है, का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। माँ आशापुरा को कच्छ की
कुलदेवी माना जाता है, बड़ी तादाद में इलाके के लोगों की उनमें आस्था है, मुख्यत: नवानगर, राजकोट, मोरबी, गोंडल, बारिया राज्य के शासक वंश, चौहान, जडेजा राजपूतों की यह कुलदेवी है, आशापुरा
माता का मुख्य मंदिर कच्छ में (भुज से 95 किलोमीटर दूर) स्थित है, कच्छ के “गोसर” और “पोलादिया” समुदाय के लोग भी
आशापुरा माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं।
14वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर का निर्माण
जडेजा साम्राज्य के शासनकाल के दौरान किया गया था, अत्यधिक प्राचीन इस मंदिर को कई
बार भूकंप से क्षति भी पहुंची है। पहली बार 1819 में और
दूसरी बार 2001 में आए भूकंप से मंदिर क्षतिग्रस्त हो चुका है। मंदिर के भीतर 6 फीट ऊंची लाल रंग की आशापुरा माता की मूर्ति स्थापित
है, प्रतिमा
आधी जमीन में है और आधी जमीन के ऊपर, कहा जाता है कि एक साधु ने एक आदमी से कहा था
कि एक घर का दरवाजा 6 महीने तक बंद रखो, तो उसमें से देवी प्रकट होंगी, उस आदमी ने 3 ही महीने में दरवाजा खोल दिया, देवी आधी ही प्रकट हुई थीं, तब से मूर्ति आधी ऊपर, आधी नीचे है।
साल भर श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए मंदिर में जुटते
हैं. नवरात्र के दौरान इस मंदिर में खूब चहल-पहल देखने को मिलती है।
माँ आशापुरा को अन्नपूर्णा देवी का अवतार माना जाता है, माँ
आशापुरा के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है, ऐसी मान्यता है कि माँ आशापुरा से
जो भी मुराद मांगी जाती है, वह जरूर पूरी होती है। गुजरात में कई अन्य
समुदाय भी माँ आशापुरा को अपनी कुलदेवी के तौर पर पूजते हैं, हर वर्ष चैत्र तथा
शारदीय नवरात्रि में संपूर्ण गुजरात तथा राजस्थान से भारी
संख्या में भक्त इस मंदिर तक पैदल चल कर आते हैं।
माँ आशापुरा का उल्लेख पुराणों औऱ रूद्रयमल तंत्र में भी
मिलता है, इस मंदिर में पूजा की शुरूआत कब हुई, इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं मिलता है लेकिन 9वीं शताब्दी ईस्वी में सिंह प्रांत के राजपूत सम्मा वंश के शासनकाल के दौरान माँ
आशापुराकी पूजा होती थी, इसके बाद कई और समुदायों ने भी माँ आशापुराकी पूजा करना
शुरू कर दी, अभी भी यहाँ इन्ही राजवंशों के वंशजों के द्वारा माता की आरती की जाती है।
कैसे पंहुचें:- कच्छ जिला मुख्यालय “भुज” गुजरात का एक प्रमुख
शहर है तथा यह गुजरात के साथ साथ देश के कई बड़े शहरों के साथ रेल , सड़क मार्ग से
जुड़ा है तथा यहाँ के “श्यामजी कृष्ण वर्मा
विमानपत्तन” में मुंबई से नियमित विमान आते हैं , भुज से टैक्सी के द्वारा “माता ना मढ” आसानी से पंहुचा जा सकता है।
कहाँ ठहरें :- वैसे तो मंदिर के पास ही ट्रस्ट द्वारा
संचालित सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला की व्यवस्था है लेकिन नियमानुसार यहाँ कमरा केवल
एक रात रूकने की शर्त पर ही दिया जाता है, इसके अलावा यहाँ किसी होटल आदि की
व्यवस्था नहीं है आप भुज में ही जहाँ ठहरने के लिए होटल आदि की अच्छी व्यवस्था है, रूक सकते हैं इसके अलावा आप आस पास के कुछ प्रमुख स्थलों जैसे कोटेश्वर महादेव, नारायण सरोवर तथा लखपत फोर्ट आदि भी देख सकते हैं.......
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