रविवार, 25 अक्तूबर 2020

गेहूँ के जवारे(प्राकृतिक अमृत);Wheat Grass (Natural Nector)

 



जिस प्रकार मानव शरीर के लिए लाल रक्त मुख्याधार है, ठीक उसी प्रकार गेँहू के जवारे का रस भी ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अनुपम औषधि है. इसे अगर हरा रक्त या प्राकृतिक अमृत भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

गेहूँ के बोने पर जो एक ही पत्ता उगकर ऊपर आता है उसे जवारा कहा जाता है. नवरात्रि आदि उत्सवों में यह घर-घर में छोटे-छोटे मिट्टी के पात्रों में मिट्टी डालकर बोया जाता है.

गेहूँ के जवारे का रस, प्रकृति के गर्भ में छिपी औषधियों के अक्षय भंडार में से मानव को प्राप्त एक अनुपम भेंट है. गेहूँ के कोमल जवारों के रस से अनेक असाध्य रोगों को मिटाने के सफल प्रयोग किये हैं. उपरोक्त जवारों के रस द्वारा उपचार से 350 से अधिक रोग मिटाने के आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आये हैं. जीव-वनस्पति शास्त्र में यह प्रयोग बहुत मूल्यवान है.

गेहूँ के जवारों के रस में रोगों के उन्मूलन की एक विचित्र शक्ति विद्यमान है. शरीर के लिए यह एक शक्तिशाली टॉनिक है. इसमें प्राकृतिक रूप से कार्बोहाईड्रेट आदि सभी विटामिन, क्षार एवं श्रेष्ठ प्रोटीन उपस्थित हैं.

इसके सेवन से असंख्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिली है. जैसे मूत्राशय की पथरी, हृदयरोग, डायबिटीज, पायरिया एवं दाँत के अन्य रोग, पीलिया, लकवा, दमा, पेट दुखना, पाचन क्रिया की दुर्बलता, अपच, गैस, विटामिन ए, बी आदि के अभावोत्पन्न रोग, जोड़ों में सूजन, गठिया, संधिशोथ, त्वचासंवेदनशीलता (स्किन एलर्जी) सम्बन्धी बारह वर्ष पुराने रोग, आँखों का दौर्बल्य, केशों का श्वेत होकर झड़ जाना, चोट लगे घाव तथा जली त्वचा सम्बन्धी सभी रोग.

हजारों रोगियों एवं निरोगियों ने भी अपनी दैनिक खुराकों में बिना किसी प्रकार के फेरबदल किये गेहूँ के जवारों के रस से बहुत थोड़े समय में चमत्कारिक लाभ प्राप्त किये हैं. कई लोग अपना अनुभव बताते हैं कि जवारों के रस से आँख, दाँत और केशों को बहुत लाभ पहुँचता है. कब्ज मिट जाती है, अत्यधिक कार्यशक्ति आती है और थकान नहीं होती.

गेहूँ के जवारे उगाने की विधि:
मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें. उनमें खाद मिली मिट्टी लें. रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें. पहले दिन कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें. पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें. सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें. इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें. सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें. नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें. खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें. इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें. इस प्रक्रिया में भूलकर भी प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें. प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है. प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें. मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें. सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के जवा रे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे. ऐसे जवारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं. ज्यो-ज्यों जवारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे. अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए. जवारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं. खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये. इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें.



जवारा रस बनाने की विधि:-
जब समय अनुकूल हो तभी जवारे काटें. काटते ही तुरन्त धो डालें. धोते ही उन्हें कूटें. कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें. इसी प्रकार सभी जवारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा. चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है. रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें. किसी सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है. प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है. दिन में किसी भी समय जवारों का रस पिया जा सकता है. परन्तु रस लेने के आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए. आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है. परंतु इससे घबराना नहीं चाहिए. शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है. सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे. (Detoxification process) जवारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं. इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी. विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि जवारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें. रस निकालने की सुविधा न हो तो जवा रे चबाकर भी खाये जा सकते हैं. इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे. मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े जवारे चबाने से दूर हो जाती है. दिन में दो या तीन बार जवारों का रस लीजिये.
रामबाण इलाज:-
गंभीर रोगों से जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर जवा रों का रस दिया जाता है. जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है. जवारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोग व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा ?

सस्ता और सर्वोत्तमः-
जवारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है. दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस जवारे के रस में है. इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है. घर में उगाने पर सदैव सुलभ है. गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है. गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है. नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी जवारे के रस का सेवन कर सकते हैं. नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है.

जवारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं. इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति जवारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है. इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं.

डॉक्टर की सहायता या सलाह के बिना गेहूँ के जवारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो. कई लोगों द्वारा जवारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं. कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं. शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं. आरोग्यता के लिए भाँति-भाँति की दवाइयों में पानी की तरह पैसे बहाना बंद करें. इस सस्ते, सुलभ तथापि अति मूल्यवान प्राकृतिक अमृत का सेवन करें और अपने तथा परिवार के स्वास्थ्य को बनाये रखकर सुखी रहें. जवारे का रस सामान्यतः 60-120 एमएल प्रति दिन या प्रति दूसरे दिन खाली पेट सेवन करना चाहिये. यदि आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो 30-60 एमएल रस दिन मे तीन चार बार तक ले सकते हैं. इसे आप सप्ताह में 5 दिन सेवन करें. कुछ लोगों को शुरू में रस पीने से उबकाई सी आती है, तो कम मात्रा से शुरू करें और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें. जवारे के रस में फलों और सब्जियों के रस जैसे सेब फल, अन्नानास आदि के रस को मिलाया जा सकता है. हां इसे कभी भी खट्टे रसों जैसे नीबू, संतरा आदि के रस में नहीं मिलाएं क्योंकि खटाई जवारे के रस में विद्यमान एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती है. इसमें नमक, चीनी या कोई अन्य मसाला भी नहीं मिलाना चाहिये. जवारे के रस की 120 एम एल मात्रा बड़ी उपयुक्त मात्रा है और एक सप्ताह में इसके परिणाम दिखने लगते हैं. गेहूँ के जवारे चबाने से गले की खारिश और मुंह की दुर्गंध दूर होती है. इसके रस के गरारे करने से दांत और मसूड़ों के इन्फेक्शन में लाभ मिलता है. स्त्रियों को जवारे के रस का डूश लेने से मूत्राशय और योनि के इन्फेक्शन, दुर्गंध और खुजली में भी आराम मिलता है. त्वचा पर जवारे का रस लगाने से त्वचा का ढीलापन कम होता है और त्वचा में चमक आती है.