सोमवार, 30 अप्रैल 2018

52वीं शक्तिपीठ दंतेवाडा ; 52nd Shaktipith Dantewada



छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की सुरम्य वादियों में स्थित है, दन्तेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्‍वरी मंदिर। देवी पुराण में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है । जबकि तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। जबकि कई अन्य ग्रंथों में यह संख्या 108 तक बताई गई है। दन्तेवाड़ा को हालांकि देवी पुराण के 51 शक्ति पीठों में शामिल नहीं किया गया है लेकिन इसे देवी के 52 वें शक्ति पीठ के रूप में जाना जाता है।  मान्यता है की यहाँ पर सती का दांत गिरा था इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता क़ा नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। दंतेश्‍वरी मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित हैं। दंतेश्‍वरी देवी  को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दर्ज़ा प्राप्त है। इस मंदिर की एक खासियत यह है की माता के दर्शन करने के लिए आपको लुंगी या धोती पहनकर ही मंदिर  में जाना होगा। मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जानें पर पाबन्दी है।

मंदिर के निर्माण की कथा :
दन्तेवाड़ा शक्ति पीठ में माँ दन्तेश्वरी के मंदिर का निर्माण कब व कैसे हुआ इसकि क़हानी कुछ इस प्रकार है। ऐसा माना जाता है कि बस्‍तर के पहले काकातिया राजा अन्‍नम देव वारंगल (आंध्रप्रदेश) से यहां आए थे। उन्‍हें दंतेवश्‍वरी मैय्या का वरदान मिला था। कहा जाता है कि अन्‍नम देव को माता ने वर दिया था कि जहां तक वे जाएंगे, उनका राज वहां तक फैलेगा। शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था और मैय्या उनके पीछे-पीछे जहां तक जाती, वहां तक की ज़मीन पर उनका राज हो जाता। अन्‍नम देव के रूकते ही मैय्या भी रूक जाने वाली थी।अन्‍नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे। वे चलते-चलते शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर पहुंचे। यहां उन्‍होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज़ महसूस नहीं की। सो वे वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्‍होंने पीछे पलटकर देखा। माता तब नदी पार कर रही थी। राजा के रूकते ही मैय्या भी रूक गई और उन्‍होंने आगे जाने से इनकार कर दिया। दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज़ पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में कि पायल की आवाज़ नहीं आ रही है, शायद मैय्या नहीं आ रही है सोचकर पीछे पलट गए।वचन के अनुसार मैय्या के लिए राजा ने शंखिनी-डंकिनी नदियों के संगम पर एक सुंदर घर यानि मंदिर बनवा दिया। तब से मैय्या वहीं स्‍थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर माँ दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।

अदभुत है मंदिर :
दंतेवाड़ा में माँ दंतेश्वरी की षट्भुजी छवि  को काले ग्रेनाइट पर गढ़ा गया है, मूर्ति अद्वितीय है। छह भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्म और राक्षस के बालों को माता धारण किए हुए है। यह मूर्ति नक्काशीयुक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। माता के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। द्वार पर दो द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं जो चार भुजाओं से युक्त हैं। बाएं हाथ में सर्प और दाएं हाथ में गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है। इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान हैं जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने विशाल गरुड़ स्तम्भ से अवस्थित है। बत्तीस काष्ठ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के लिए सिंह द्वार का उपयोग किया जाता है  यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। यहां प्रतिदिन श्रृंगार के साथ ही माता की मंगल आरती की जाती है।

माँ भुवनेश्वरी देवी :
माँ दंतेश्वरी मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन माँ भुवनेश्वरी का मंदिर है। माँ भुवनेश्वरी को मावली माता और माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। माँ भुवनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है और लाखो श्रद्धालु उनके भक्त हैं। छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और माता दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है। लगभग चार फीट ऊंची माँ भुवनेश्वरी की अष्टभुजी प्रतिमा अद्वितीय है। मंदिर के गर्भगृह में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं है। वहीं भगवान विष्णु अवतार नरसिंह, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमाएं स्थापित हैं। कहा जाता है कि माणिकेश्वरी मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुआ।



फाल्गुन में होता है मड़ई उत्सव का आयोज़न :

होली से दस दिन पूर्व यहां फाल्गुन मड़ई का आयोजन होता है, जिसमें आदिवासी संस्कृति और परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है। नौ दिनों तक चलने वाले फाल्गुन मड़ई में आदिवासी संस्कृति की अलग-अलग रस्मों की अदायगी होती है। मड़ई में ग्राम देवी-देवताओं की ध्वजा, छत्तर और ध्वजा दण्ड लिए हुए पुजारी शामिल होते हैं। करीब 250 से भी ज्यादा देवी-देवताओं के साथ माता  की डोली प्रतिदिन नगर भ्रमण कर नारायण मंदिर तक जाती है और लौटकर पुनः मंदिर आती है। इस दौरान नाच मंडली की रस्म होती है, जिसमें बंजारा समुदाय द्वारा किए जाने वाला लमान नाचा के साथ ही भतरी नाच और फाग गीत गाया जाता है। माता की डोली के साथ ही फाल्गुन नवमीं, दशमी, एकादशी और द्वादशी को लमहा मार, कोड़ही मार, चीतल मार और गौर मार की रस्म होती है। मड़ई के अंतिम दिन सामूहिक नृत्य में सैकड़ों युवक-युवती शामिल होते हैं और रात भर इसका आनंद लेते हैं। फाल्गुन मड़ई में दंतेश्वरी मंदिर में बस्तर अंचल के अलावा संपूर्ण छत्तीसगढ़  और देश तथा विदेशों से भी लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भागीदारी होती है।



दोस्तों यह तो थी माँ दंतेश्वरी के धाम दंतेवाडा के सम्बन्ध में कुछ जानकारियाँ, हमे अपने comments के द्वारा जरुर बताएं, कि आपको ये post कैसी लगी, आगे भी हम आपको ऐसी ही अच्छी-अच्छी जानकारियाँ उपलब्ध कराते रहेंगे

रविवार, 29 अप्रैल 2018

सहज योग ; Sahaj Yog



हज योग का शाब्दिक अर्थ है कि सह=आपके साथ और ज=जन्मा हुआ तथा योग से तात्पर्य मिलना या जुड़ना अत: वह तरीका जिससे मनुष्य का सम्बन्ध (योग) परमात्मा से हो सकता है सहजयोग कहलाता है , मानव शरीर के अन्दर  जन्म से ही एक सूक्ष्म तन्त्र अदृश्य  विद्यमान होता है जिसे आध्यात्मिक भाषा में सात चक्र और इड़ा, पिंगला, सुशुम्ना नाड़ियों के नाम से जाना जाता है इसके साथ परमात्मा की एक शक्ति कुण्डलिनी नाम से मानव शरीर में स्थित होती है यह कुण्डलिनी शक्ति बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है और जब भ्रूण दो से ढाई महीने (६० से ७५ दिन) का होता है तब यह शिशु के तालू भाग (limbic area) में प्रवेश करती है और मस्तिष्क  में अपने प्रभाव को सक्रिय करते हुए रीढ़ कि हड्डी में मेरुरज्जु में होकर नीचे उतरती है जिससे ह्रदय में धडकन शुरू हो जाती है इस तरह यह कार्य परमात्मा का एक जीवंत कार्य होता है जिसे डॉक्टर बच्चे में एनर्जी आना बोलते हैं इसके बाद यह शक्ति रीढ़ कि हड्डी के अंतिम छोर तिकोनी हड्डी (sacrum bone) में जाकर साढ़े तीन कुंडल (लपेटे) में जाकर स्थित हो जाती है इसीलिए इस शक्ति को कुण्डलिनी कहते  हैं यह शक्ति प्रत्येक मानव में सुप्तावस्था में होती है जो मनुष्य या अवतार इस शक्ति के जागरण का अधिकारी है वह यह कुण्डलिनी शक्ति जागृत करता है जिससे मानव को आत्मसाक्षात्कार मिलता है तब यह कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है और सातों चक्रों से गुजरती हुई सहस्त्रार चक्र पर पहुँचती है तब मानव के सिर के तालू भाग में और हथेलियों में ठण्डी -ठण्डी लहरियां महसूस होती है जिसे हिन्दू धर्म में परम चैतन्य (Vaibrations), इस्लाम में रूहानी,बाइबिल में कूल ब्रीज ऑफ़ द होली घोस्ट कहा जाता है इस तरह सभी धर्म ग्रंथो में वर्णित आत्मसाक्षात्कार को सहजयोग से प्राप्त किया जा सकता है
अब तक धरती पर जो भी सच्चे गुरु ,सूफी, संत, पीर पैगम्बर और अवतार आये वे सहजयोग से भलीभांति परिचित थे वे सब परमात्मा से योग का एकमेव रास्ता सहजयोग दुनिया को बताना चाहते थे परन्तु उस समय साधारण मानव समाज उन बातों को समझ नहीं पाया और उनके जाने के बाद अलग अलग धर्म सम्प्रदाय बनाकर मानव आपस में लड़ने लग गये संत कबीर ने जीवन भर सहजयोग का ही वर्णन किया है परन्तु वे किसी को आत्मसाक्षात्कार दे नहीं पाये



धरती पर मानव उत्क्रांति में समय समय पर किये गये परमात्मा के कार्य में अनेक गुरु ,सूफी, संत, पीर पैगम्बर और अवतारों ने धरती पर जन्म लिया और मानव जाति को सहजयोग का ज्ञान दिया अब तक इनके किये गये अधूरे आध्यात्मिक कार्यो को आगे बढ़ाते हुए इसको सार्वजनिक करने के लिए साक्षात् आदिशक्ति का अवतरण निर्मला श्रीवास्तव (श्री माताजी निर्मला देवी) रूप में हुआ जो आधुनिक युग में सहजयोग संस्थापिका है जिन्होंने दुर्लभ आत्मसाक्षात्कार को सार्वजनिक और आसान बनाकर संसार में प्रदान किया जिसका आज विश्व के १७० देशों के सभी धर्मों के लोग लाभ ले रहे हैं
आधुनिक युग में श्री माताजी निर्मला देवी ही है जिसने संसार के सभी धर्मो को गहराई से समझाते हुए सबमे एक ही सत्यता को स्पष्ट किया है और सभी धर्मो को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया है

सहज योग क्‍या है : 

सहज योग में आसान मुद्रा में बैठकर मेडिटेशन किया जाता है। इसका अभ्यास करने वाले लोगों को ध्‍यान के दौरान सिर से लेकर हाथों तक एक ठंडी हवा का एहसास होता है। सहज योग केवल एक क्रिया का नाम नहीं हैं, बल्कि यह एक तकनीक भी है।


कैसे करें सहज योग की शुरूआत :


माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा विकसित सहज योग मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होता है। यह मुख्य रुप से आत्म बोध का प्रचार है जिससे कुंडलिनी जागृत होकर व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाती है। सहज योग में कुंडलिनी जागरण व निर्विचार समाधि, मानसिक शांति से लोगों को आत्मबोध होता है और अपने आप को जानने में मदद मिलती है। माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा विकसित इस योग को मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद माना जाता है।


क्‍या कहते हैं शोध :

यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सा विभाग के वरिष्ठ व्याख्याता रमेश मनोचा ने सहज योग पर किए शोध में पाया कि सामान्य लोगों की तुलना में उन लोगों की मानसिक और शारीरिक सेहत ज्यादा अच्छी थी, जिन्होंने कम से कम दो वर्षों तक सहज योग को आजमाया था।

 

सामान्य स्वास्थ्य के लिए :

चिकित्सकों ने सहज योग के अन्य प्रभावों के बारे में भी बताया है। उनके अनुसार योग को करने से लोगों में शारीरिक व मानसिक तनाव से मुक्ति व आराम मिलता है। साथ ही शरीर में होने वाली बीमारियों को जड़ को खत्म किया जा सकता है।


बीमारियों में लाभकारी :


शोधकर्ताओं के मुताबिक मौन की यह प्रक्रिया कायिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई रास्ते खोलती है। सहज योग के नियमित अभ्यास से कैंसर, ब्लड प्रेशर, हाइपर टेंशन और हृदय के रोगियों को भी लाभ हुआ है।


विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद :

खासकर विद्यार्थियों के लिए तो योग अमृत के समान है। जो विद्यार्थी योग को अपने जीवन में नियमित रूप से शामिल करते हैं वे न केवल पढ़ाई में अव्वल आते रहते हैं, साथ ही अन्य गतिविधियों में भी उनका कोई मुकाबला नहीं रहता।


तनाव से मुक्ति :

सहज योग से दिमाग को शक्ति मिलती है। इस योग से व्यक्ति को आसपास के तनाव, दिनभर की थकान व अपने गुस्से को नियंत्रित करने में आसानी होती है। जिससे नींद में भी सुधार होता है। 


एकाग्रता :


सहज योग से लोगों में एकाग्रता बढ़ती है और जो वे जीवन में हासिल करना चाहते है आसानी से कर सकते हैं। इसलिए नियमित रूप से अपनी दिनचर्या में सहज योग को शमिल करें। 


संचार कौशल :

सहज योग के नियमित अभ्यास से संचार कौशल में सुधार होता है जिससे आप लोगों से अच्छी तरह से पेश आते हैं। साथ ही दूसरों के साथ बेहतर रिश्ते जोड़ने में मदद मिलती है।

बुरी आदतों व लत से छुटकारा :

किसी भी तरह की बुरी आदत व लत से जैसे धूम्रपान, मदिरा आदि का सेवन मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए नुकसानदेह होता है। इन आदतों को छोड़ने के लिए सहज योग जैसी विधियां ज्यादा कारगर साबित होती हैं।


तो मित्रों यह तो थी सहज योग से जुड़ी कुछ जानकारियां यदि आप सहज योग के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं या आप इससे से जुड़ना चाहते हैं तो आप अपने नजदीकी सहज योग सेंटर से संपर्क कर सकते हैं, सहज योग की वेब साईट https://www.sahajayoga.org.in से आप सारी जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं, यह जानकारी आप अपने करीबियों तथा मित्रों से share करके उन्हें भी लाभ पहुंचा सकते हैं, तो जरुर share करें ...............

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

तीन वृक्षों की कथा ; Tale of three trees






दोस्तों, यह एक बहुत पुरानी बात है| किसी नगर के समीप एक जंगल तीन वृक्ष थे| वे तीनों अपने सुख-दुःख और सपनों के बारे में एक दूसरे से बातें किया करते थे|
एक दिन पहले वृक्ष ने कहा – “मैं खजाना रखने वाला बड़ा सा बक्सा बनना चाहता हूँ| मेरे भीतर हीरे-जवाहरात और दुनिया की सबसे कीमती निधियां भरी जाएँ. मुझे बड़े हुनर और परिश्रम से सजाया जाय, नक्काशीदार बेल-बूटे बनाए जाएँ, सारी दुनिया मेरी खूबसूरती को निहारे, ऐसा मेरा सपना है|”


दूसरे वृक्ष ने कहा – “मैं तो एक विराट जलयान बनना चाहता हूँ| ताकि बड़े-बड़े राजा और रानी मुझपर सवार हों और दूर देश की यात्राएं करें, मैं अथाह समंदर की जलराशि में हिलोरें लूं, मेरे भीतर सभी सुरक्षित महसूस करें और सबका यकीन मेरी शक्ति में हो… मैं यही चाहता हूँ|” 



अंत में तीसरे वृक्ष ने कहा – “मैं तो इस जंगल का सबसे बड़ा और ऊंचा वृक्ष ही बनना चाहता हूँ| लोग दूर
से ही मुझे देखकर पहचान लें, वे मुझे देखकर ईश्वर का स्मरण करें, और मेरी शाखाएँ स्वर्ग तक पहुंचें…
मैं संसार का सर्वश्रेष्ठ वृक्ष ही बनना चाहता हूँ|”



ऐसे ही सपने देखते-देखते कुछ साल गुज़र गए. एक दिन उस जंगल में कुछ लकड़हारे आए| उनमें से जब एक ने पहले वृक्ष को देखा तो अपने साथियों से कहा – “ये जबरदस्त वृक्ष देखो! इसे बढ़ई को बेचने पर बहुत पैसे मिलेंगे.” और उसने पहले वृक्ष को काट दिया| वृक्ष तो खुश था, उसे यकीन था कि बढ़ई उससे खजाने का बक्सा बनाएगा|
दूसरे वृक्ष के बारे में लकड़हारे ने कहा – “यह वृक्ष भी लंबा और मजबूत है| मैं इसे जहाज बनाने वालों को बेचूंगा”| दूसरा वृक्ष भी खुश था, उसका चाहा भी पूरा होने वाला था|
लकड़हारे जब तीसरे वृक्ष के पास आए तो वह भयभीत हो गया|वह जानता था कि अगर उसे काट दिया गया तो उसका सपना पूरा नहीं हो पाएगा एक लकड़हारा बोला – “इस वृक्ष से मुझे कोई खास
चीज नहीं बनानी है इसलिए इसे मैं ले लेता हूं”| और उसने तीसरे वृक्ष को काट दिया|
पहले वृक्ष को एक बढ़ई ने खरीद लिया और उससे पशुओं को चारा खिलानेवाला कठौता बनाया|कठौते को एक पशुगृह में रखकर उसमें भूसा भर दिया गया| बेचारे वृक्ष ने तो इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी|
दूसरे वृक्ष को काटकर उससे मछली पकड़नेवाली छोटी नौका बना दी गई| भव्य जलयान बनकर राजा-महाराजाओं को लाने-लेजाने का उसका सपना भी चूर-चूर हो गया|
तीसरे वृक्ष को लकड़ी के बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लिया गया और टुकड़ों को अंधेरी कोठरी में रखकर लोग भूल गए|
एक दिन उस पशुशाला में एक आदमी अपनी पत्नी के साथ आया और स्त्री ने वहां एक बच्चे को जन्म दिया|वे बच्चे को चारा खिलानेवाले कठौते में सुलाने लगे। कठौता अब पालने के काम आने लगा| पहले वृक्ष ने स्वयं को धन्य माना कि अब वह संसार की सबसे मूल्यवान निधि अर्थात एक शिशु को आसरा दे रहा था|
समय बीतता गया और सालों बाद कुछ नवयुवक दूसरे वृक्ष से बनाई गई नौका में बैठकर मछली पकड़ने के
लिए गए, उसी समय बड़े जोरों का तूफान उठा और नौका तथा उसमें बैठे युवकों को लगा कि अब कोई
भी जीवित नहीं बचेगा। एक युवक नौका में निश्चिंत सा सो रहा था। उसके साथियों ने उसे जगाया और तूफान के बारे में बताया। वह युवक उठा और उसने नौका में खड़े होकर उफनते समुद्र और झंझावाती हवाओं से कहा – “शांत हो जाओ”, और तूफान थम गया| यह देखकर दूसरे वृक्ष को लगा कि उसने दुनिया के परम ऐश्वर्यशाली सम्राट को सागर पार कराया है |
तीसरे वृक्ष के पास भी एक दिन कुछ लोग आये और उन्होंने उसके दो टुकड़ों को जोड़कर एक घायल आदमी के ऊपर लाद दिया। ठोकर खाते, गिरते- पड़ते उस आदमी का सड़क पर तमाशा देखती भीड़ अपमान करती रही। वे जब रुके तब सैनिकों ने लकड़ी के सलीब पर उस आदमी के हाथों-पैरों में कीलें ठोंककर उसे पहाड़ी की चोटी पर खड़ा कर दिया|
दो दिनों के बाद रविवार को तीसरे वृक्ष को इसका बोध हुआ कि उस पहाड़ी पर वह स्वर्ग और ईश्वर के सबसे समीप पहुंच गया था क्योंकि ईसा मसीह को उसपर सूली पर चढ़ाया गया था।
निष्कर्ष :– सब कुछ अच्छा करने के बाद भी जब हमारे काम बिगड़ते जा रहे हों तब हमें यह समझना चाहिए कि शायद ईश्वर ने हमारे लिए कुछ बेहतर सोचा है| यदि आप उसपर यकीन बरक़रार रखेंगे तो वह आपको नियामतों से नवाजेगा|प्रत्येक वृक्ष को वह मिल गया जिसकी उसने ख्वाहिश की थी, लेकिन उस रूप में नहीं मिला जैसा वे चाहते थे। हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे लिए क्या सोचा है या ईश्वर का मार्ग हमारा मार्ग है या नहीं… लेकिन उसका मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है|


मित्रों अपने बहुमूल्य विचार हमें नीचे Comment के माध्यम से दें! धन्यवाद

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

सत्यनारायण व्रत कथा एवं महात्म्य ; Worship of Lord Satyanarayan




श्री सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है, इसके अलावा किसी भी बृहस्पतिवार या संकट की घड़ी में भी यह व्रत किया जा सकता है  यह व्रत सत्य को अपने जीवन और आचरण में उतारने के लिए किया जाता है।इस सत्यव्रत को कोई मानव यदि अपने जीवन और आचरण में स्थापित करता है तो वह अपने भीतर भगवान विष्णु के गुणों को आत्मसात करता है, और सम्पूर्ण सुख समृद्धि व ऐश्वर्यों को प्राप्त होता हुआ जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म-अर्थ, काम-मोक्ष को सिद्ध कर लेता है। घर में हो रहे क्लेशों से मुक्ति प्राप्ति का यह एक अद्वितीय व्रत है।

सत्यनारायण व्रत के पीछे की कथा

एक बार नारद मुनि ने पृथ्वी पर भ्रमण के दौरान मनुष्य को विभिन्न प्रकार के दुःख-दर्द,निर्धनता,रोगों एवं क्लेशों से जूझते हुए देखा। वे यह सब देख कर अत्यंत ही दुखी हुए और भगवान विष्णु के पास गए। नारद मुनि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना कि वे मनुष्यों के दुखों को समाप्त करने का कोई उयाय बतायें। भगवान विष्णु ने उन्हें सत्यनारायण की कथा तथा उसके महत्त्व के बारे में बताया तथा कहा कि इस व्रत को भक्तिपूर्वक करने से  मनुष्य के सारे दुःख-दर्द,निर्धनता,रोग एवं क्लेश समाप्त हो जाएंगे।इसके बाद जब नारद मुनि पृथ्वी पर वापस गए तो उन्होंने सत्य नारायण के व्रत के बारे में सब मनुष्यों को बताया। और यह भी कहा कि इसे श्रद्धापूर्वक करने से इंसान की हर मनोकामना पूरी हो जायेगी।

सत्यनारायण भगवान की महिमा
भगवान सत्यनारायण विष्णु भगवान का ही एक रूप हैंभगवान सत्यनारायण का उल्लेख स्कन्द पुराण में भी मिलता है स्कन्द पुराण में भगवान विष्णु ने नारदजी को इस व्रत का महत्व बताया है कलयुग में सबसे सरल, प्रचलित और प्रभावशाली पूजा भगवान सत्यनारायण की ही मानी जाती है

सत्यनारायण व्रत कैसे किया जाता है?
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, पहले व्रत और पूजन और तत्पश्चात सत्यनारायण की कथाइसे  कलियुग का सबसे कल्याणकारी व्रत कहा गया है यह पूजा बेहद आसान होते हुए भी  विशेष हैयह व्रत कम से कम सामग्री में  तथा अत्यंत ही  सरल विधि से किया जा  सकता है, इस पूजा में गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल भी शामिल हो जाते हैं, यह पूजा केले के पेड़ के नीचे करें या अपने घर के ब्रह्म स्थान पर करें, प्रसाद में पंजीरी, पंचामृत, फल और तुलसी दल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, यह ना भूलें

सत्यनारायण व्रत कैसे अन्य व्रत से अलग है?
सत्यनारायण व्रत  इसलिए अलग है क्योंकि इसे करने की विधि बहुत ही साधारण है। इसे करने के लिए किसी पंडित की जरुरत नहीं पड़ती है यह कोई भी कर सकता है। फिर चाहे वह किसी भी जाती का हो। इस व्रत में सिर्फ भगवान विष्णु की पूजा होती है। इसे आप कही भी करा सकते हैं यह स्थान मंदिर या घर भी हो सकता है। यह व्रत कलयुग के लिए ही बना है, जिसमें आपको किसी भी वेद या पुराणों को पढ़ने की जरुरत नहीं है। इस व्रत में यही बताया गया है कि मोक्ष की प्राप्ति इस युग में श्री नारायण का नाम लेने से ही होगी।

विधि
सर्वप्रथम भगवान सत्यनारायण के चित्र को एक स्वच्छ लाल वस्त्र के ऊपर स्थापित करें, तथा उनके दोनों ओर केले के पत्तों या खम्भों को लगायें, भगवान के विग्रह पर माल्यार्पण करें, गौरी-गणेश एवं कलश की स्थापना करें, कुमकुम और अक्षत से बारी-बारी सभी विग्रहों पर तिलक करें तथा पंचामृत हेतु भगवान शालिग्राम की भी स्थापना करें, दीपक, धूप एवं अगरबत्ती प्रज्ज्वलित करें, भगवान को केले, दही (शक्कर तथा केसर मिश्रित) तथा गेंहू के आटे से बनायीं गयी पंजीरी (जिसमे तुलसीदल का होना अनिवार्य है) का भोग लगायें, उसके बाद परिवार के सारे सदस्य बैठकर श्री सत्यनारायण कथा का श्रवण करें  तथा भगवान शालिग्राम का पंचामृत से अभिषेक करें, अंत में भगवान की आरती करें और आचमन के बाद भोग लगाए गए प्रसाद को सभी ग्रहण कर के व्रत का उद्यापन करें, जीवन में हर तरह के कल्याण के लिए सत्यनारायण भगवान का व्रत, कथा और पूजा सबसे उत्तम है।

कैसे पूरी होंगी विशेष मनोकामनाएं?
अगर आपके मन में भी कोई विशेष कामना है तो भी सत्यनाराय़ण की कृपा से पूरी हो सकती है,नियमित रूप से हर महीने की पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की पूजा करें, इससे आपकी विशेष मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।



विशेष उद्देश्यों के लिए सत्यनारायण पूजन का महत्व
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सनातन सत्यरूपी विष्णु भगवान कलियुग में अलग-अलग रूप में आकर लोगों को मनवांछित फल देंगे, इंसानों के कल्याण के लिए ही श्री हरि ने सत्यनारायण रूप लिया। विशेष उद्देश्यों के लिए सत्यनारायण भगवान की पूजा का क्या महत्व है? आइए जानें........ 
गृह शान्ति और सुख समृद्धि के लिए इनकी पूजा विशेष लाभ देती है, 
ये पूजा शीघ्र विवाह के लिए और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए भी लाभकारी है, ये पूजा संतान के जन्म के अवसर पर और संतान से जुड़े अनुष्ठानों पर बहुत लाभकारी है, विवाह के पहले और बाद में सत्यनारायण की पूजा बहुत शुभ फल देती है, आयु रक्षा तथा सेहत से जुड़ी समस्याओं में इस पूजा से विशेष लाभ होता है।

तो मित्रों यदि आप या आपके कोई रिश्तेदार या मित्र भी अपने जीवन में बहुत से समस्याओं से जूझ रहे हैं तो भक्तिपूर्वक हर पूर्णिमा को परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर भगवान सत्यनारायण की कथा एवं व्रत का आयोजन करें निश्चित ही आपके जीवन से सभी कठिनाइयों एवं दुखों का नाश होगा तथा आप सुख एवं समृद्धि को प्राप्त करेंगे।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

सह्याद्रि पर्वतमाला के हिल स्टेशन ; Hill Station of Sahyadri Mountains



भारत के पश्चिमी घाट के साथ-साथ  चलने वाली सह्याद्री एक सुन्दर हरी-भरी पर्वत श्रृंखला है, जो कई अनछुए गांवों, हिल स्टेशन और अन्य खूबसूरत स्थलों का घर मानी जाती है, यह अपनी जैव-विविधता के लिए भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। पश्चिमी घाट अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से विश्व भर के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है,इस पश्चिमी घाट का अधिकांश हिस्सा महाराष्ट्र राज्य के अंतर्गत है। इगतपुरी की शांत घाटियों से लेकर महाबलेश्वर की धुंधली सुबह तक महाराष्ट्र के सभी बेहतरीन हिल स्टेशन आपके मस्तिष्क पर अपनी छाप जरूर छोड़ देंगे। यहां के सौन्दर्य  को देख आपके भीतर का कवि अवश्य जाग जायेगा । आज इस खास लेख में जानिए महाराष्ट्र के उन चुनिंदा सबसे खास हिल स्टेशन के बारे में जहाँ आप इन तेज गर्मियों के दौरान घूमने का कार्यक्रम बना सकते हैं।


माथेरान

खूबसूरत हरी सह्याद्री पहाड़ियों की पृष्ठभूमि के साथ, माथेरान मुंबई के नजदीक सबसे सुंदर और शांत हिल स्टेशनों में गिना जाता है। यहां चलने वाली ठंडी हवा सैलानियों को उत्साहित करने का काम करती है। यहां का वातावरण काफी ताजगी भरा है। जानकारी के लिए बता दें कि माथेरन महाराष्ट्र का एकमात्र इको-फ्रेंडली हिल स्टेशन है जिसे पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसके अलावा यह हिल स्टेशन भारत का एकमात्र ऑटोमोबाइल मुक्त हिल स्टेशन है। आप यहां ट्री हिल पॉइंट, इको प्वाइंट, अलेक्जेंडर प्वाइंट, और प्रबल किला की सैर कर सकते हैं इसके अलावा आप यहां ट्रेकिंग और लंबी पैदल यात्रा का भी रोमांचक आनंद ले सकते हैं।

इगतपुरी

इगतपुरी हिल स्टेशन मुंबई और पुणे के मध्य एक शानदार स्थल  है। आत्मिक और मानसिक शांति के लिए यह स्थान काफी आदर्श माना जाता है। यहां आपको कई ऐसी ध्यान-यौगिक क्रियाएं कराने वाली संस्थाएं मिल जाएंगी, जिसने जुड़कर आप अपनी आत्मा को शांति का अनुभव करा सकते हैं। यहां की मनमोहक जलवायु, खूबसूरत घाटियां, जल प्रपात और प्राचीन किले इगतपुरी को महाराष्ट्र का एक खूबसूरत हिल स्टेशन बनाने का काम करते हैं। मुंबई के रास्ते आप यहां तक आसानी से पहुंच सकते हैं। आप यहां हाइकिंग और ट्रेकिंग जैसे रोमांचक एडवेंचर का आनंद भी से सकते हैं।


महाबलेश्वर

महाबलेश्वर महाराष्ट्र के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में गिना जाता है। यहां अकसर मुंबई और पुणे के सैलानी वीकेंड का आनंद उठाने के लिए आते हैं। महाबलेश्वर पुणे के काफी नजदीक है अगर आप यहां आना चाहते हैं तो पुणे के रास्ते यहां तक पहुंच सकते हैं। यहां बहुत से प्वाइंट्स मौजूद है जहां से आप प्राकृतिक सुंदरता का आनंद जी भरकर उठा सकते हैं। केट प्वाइंट, एलिफेंट प्वाइंट, वेना झील, चाइनामैन झरना और कनॉट पीक यहां के चुनिंदा सबसे खास गंतव्य माने जाते हैं। यहां से आप कुष्णा नदी के उद्गम स्थल को भी देख सकते हैं जो ओल्ड महाबलेश्वर के महादेव मंदिर के पास स्थित है। आप यहां माउंटेन बाइकिंग, रॉक क्लाइंबिंग, नेचर ट्रेल्स, घुड़सवारी आदि एडवेंचर का आनंद भी उठा सकते हैं।

पंचगनी

पंचगनी को स्थानीय भाषा में 'पांच पहाड़ियों की भूमि' कहा जाता है। यह खूबसूरत हिल स्टेशन पुणे शहर से लगभग 100 किमी दूर स्थित है। पंचगनी महाराष्ट्र के सबसे शांत और आकर्षक पर्वतीय गंतव्यों में गिना जाता है। यहां की मनमोहक पहाड़ियां आबोहवा, ऐतिहासिक सुंदरता व घने जंगल सैलानियों को काफी उत्साहित करने का काम करते हैं। आप यहां से सह्याद्री के अद्भुत दृश्यों का भी आनंद उठा सकते हैं। घने जंगलों के बीच भीलर और लिंगमाला झरनों की खूबसूरती देखने लायक है। आप यहां साइकिलिंग, स्थानीय जगहों में शॉपिंग, राजपुरी गुफाओं में केव हाइकिंग, ट्रेकिंग आदि गतिविधियों का रोमांचक आनंद ले सकते हैं।

कोरोली

उपरोक्त स्थानों के अलावा आप महाराष्ट्र के कोरोली हिल स्टेशन के भ्रमण का प्लान भी बना सकते हैं। राज्य के बाकी हिल स्टेशनों की भांति कोरोली उतना प्रसिद्ध पहाड़ी गंतव्य नहीं है पर यहां की प्राकृतिक खूबसूरती का कोई जवाब नहीं। आप यहां आकर खूबसूरत घाटियों, हरे-भरे मैदानों और मनमोहक जलवायु का आनंद उठा सकते हैं। ऑफबीट वेकेशन मनाने के लिए यह हिल स्टेशन एक आदर्श गंतव्य माना जाता है। कोरोली हाइकर्स, ट्रेकर्स, प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए जन्नत से कम नहीं। नासिक के रास्ते आप यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा आप यहां ट्रेकिग का रोमांचक आनंद भी ले सकते हैं। आप यहां से त्रंबकेश्वर मंदिर और भंडारदरा जल प्रपात को देखने भी जा सकते हैं।

महाराष्ट्र के हिल स्टेशनों की बात चल रही हो तो आप खंडाला और लोनावाला को कैसे भूल सकते हैं, आइये इन दोनों स्थलों के बारे में भी विस्तार से जान लेते हैं

लोनावाला और खंडाला


महाराष्ट्र के प्रसिद्ध रमणीक स्थल एवं पर्वतीय नगर खंडाला तथा लोनावला मुंबई−पुणे राजमार्ग पर स्थित है। सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के पश्चिम घाट में मोर घाट की उतराई पर खंडाला एवं लोनावला पर्वतीय स्थल महाराष्ट्र के सैलानियों में खासे प्रसिद्ध है। फिल्म 'गुलाम' के गीत आती क्या खंडाला, के बाद से तो इस स्थल की लोकप्रियता देशव्यापी हुई है और यहां दूर−दूर से लोग आने लगे हैं। खंडाला लोनावला के मुकाबले छोटा किंतु शांत स्थल है। वर्षा ऋतु की प्रथम फुहार के बाद खंडाला का नैसर्गिक सौंदर्य अत्यंत मनोहारी हो जाता है। पर्वत श्रृंखलाओं से छोटे झरने तथा झुके हुए बादल नैसर्गिक शोभा को मनमोहक एवं नयनाभिराम बना देते हैं। यह स्थान शांत वातावरण के कारण स्वास्थ्य लाभ के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। यहां पर विश्राम गृहों, धर्मशालाओं, सेनिटोरियम आदि की भरमार है। अप्रैल माह से वर्षा आगमन तक यहां का तापमान ठीक ठाक रहता है। लोनावला की पर्वत श्रृंखलाएं पर्यटकों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र हैं। लवर्स प्वाइंट, टाइगर्स लीप, हार्स शू वैली, डीप प्वाइंट जैसे अनेकों दर्शनीय स्थल यहां पर हैं। साथ ही आप भुसी डेम तथा भुसी लेक भी देखने जा सकते हैं। भूसी बांध के अंत में जब जल प्रपात नदी से मिलने के लिए नदी की ओर ऊपर से नीचे गिरता है तो उसकी ध्वनि व सुंदर दृश्य सैलानी निहारते ही रह जाते हैं। लोनावला की गुफाएं भी अद्वितीय हैं। खासकर कारला और भाजे तथा बेडसा जैसी पुरातन गुफाएं तो खासा महत्व रखती हैं। कारला गुफा अत्यंत पुरातन एवं ऐतिहासिक गुफा है। इसका निर्माण ईसा से 160 वर्ष पहले का माना जाता है। कारला गुफा में भारतवर्ष की विशालतम चैत्य गुफा का समावेश है। यहां पर बुद्धकालीन स्थापत्य कला चरम सीमा पर है। इस गुफा में खंभों पर बनाई गई अनेक कलाकृतियां स्थापत्य कला का बढ़िया उदाहरण हैं। साथ ही यहां पर काष्ठ से बना एक मंदिर भी है जिसकी आकृति कैथेड्रल से मिलती है। यहां पर भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा भी है। भाजे गुफा लोनावला से बारह किलोमीटर दूर है। भाजे गुफा में 18 गुफाओं का समावेश है तथा 12 नंबर की गुफा सर्वश्रेष्ठ है। इसमें 13 खंभे हैं तथा 14 स्तूप हैं जो बुद्धकालीन हैं। यहां अनके विहार भी बने हुए हैं जो उपदेश एवं धार्मिक कार्यों के उपयोग में आते थे। वेडसा गुफा सुपति पर्वत पर स्थित है। यहां पर दो गुफाएं हैं। इन गुफाओं का निर्माणकाल सम्भवतः प्रथम शताब्दी का है। गुफा के एक ओर स्त्री−पुरुष एवं पशुओं के सुंदर एवं मनमोहक भित्तिचित्र हैं। नारी अपने संपूर्ण श्रृंगार के साथ अश्व पर सवार है।अन्य स्तंभों पर भी इसी प्रकार की चित्रकारी है। यह गुफा 30 फुट चौड़ी तथा 45 फुट गहरी है। कारला से ही तीनों गुफाओं पर जाने की व्यवस्था है। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम द्वारा यहां पर रहने व खाने के लिए रिसोर्ट एवं होटल भी बनाये गये हैं। मुंबई से पुणे जाते समय सड़क एवं रेल मार्ग द्वारा खंडाला प्रथम तथा लोनावला द्वितीय पड़ाव पड़ते हैं। दोनों नगरों में पांच किलोमीटर की दूरी है। मुंबई से सड़क मार्ग द्वारा खंडाला 99 किलोमीटर तथा लोनावला 104 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तथा रेल मार्ग द्वारा यह दूरी 123 किलोमीटर एवं 128 किलोमीटर की है।

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