गुरुवार, 3 मई 2018

श्री अष्टविनायक यात्रा ; Shri Ashtavinayak Yatra


“श्री अष्टविनायक यात्रा”




अष्टविनायक से अभिप्राय है- आठ गणपति। इस शब्द का उपयोग भगवान श्री गणेश के आठ मंदिरों की जानी मानी तीर्थयात्रा का वर्णन करने के लिए किया जाता है। भगवान गणेश के यह आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र राज्य में ही स्थित हैं । ये दैत्य प्रवृत्तियों के उन्मूलन हेतु लिए गए उसी प्रकार के ईश्वरीय अवतार हैं, जिस प्रकार श्रीराम एवं श्रीकृष्ण के थे।पौराणिक महत्व से संबंध रखने वाली अष्टविनायक यात्रासम्पूर्ण महाराष्ट्र में बहुत प्रसिद्ध है। इस यात्रा से मंदिरों का पौराणिक महत्व एवं इतिहास पूर्ण रूप से ज्ञात होता है, इनमें विराजित भगवान श्री गणेश की प्रतिमाएँ स्वयंभू मानी जाती हैं, यानि यह स्वयं प्रगट हुई हैं। यह मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं। हर प्रतिमा का स्वरूप एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न है।

पौराणिक महत्त्व
इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्राभी की जाती है। इनमें से छ: गणपति मंदिर पुणे में तथा दो रायगढ़ ज़िले में स्थित हैं। अष्टविनायक की यात्रा आध्यात्मिक सुख और आनंद की प्राप्ति है।भगवान श्री गणेश जल तत्व के देवता माने जाते हैं। जल पंचतत्वों या पंचभूतों में एक है। पूरे जगत की रचना पंचतत्वों से हुई है। इस प्रकार जल के साथ श्री गणेश हर जगह उपस्थित हैं। मानव जीवन जल के बिना संभव नहीं है। जल के बिना गति, प्रगति कुछ भी असंभव है। इसलिए गणेश को मंगलमूर्ति के रूप में प्रथम पूजा जाता है। हिन्दू धर्म के ग्रंथों में सृष्टि रचने वाले भगवान ब्रह्मदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में भगवान गणेश अलग-अलग रूप में अवतरित होंगे। कृतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन और कलयुग में धूम्रकेतु अवतार के नाम से । इसी पौराणिक महत्व से जुड़ी है महाराष्ट्र में अष्टविनायक यात्रा। विनायकभगवान गणेश का ही एक नाम है।

अष्ट पीठ
पुणे के समीप अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास है। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है। अष्टविनायक दर्शन की शास्त्रोक्त क्रमबद्धता इस प्रकार है।

1. मयूरेश्वर या मोरेश्वर मोरगाँव, पुणे
2.
सिद्धिविनायक – सिद्धटेक,करजत तहसील, अहमदनगर, पुणे
3. बल्लालेश्वर पाली गाँव, रायगढ़
4.
वरदविनायक कोल्हापुर, रायगढ़
5.
चिंतामणी थेऊर गाँव, पुणे
6.
गिरिजात्मज लेण्याद्री गाँव, पुणे
7.
विघ्नेश्वर  ओझर,पुणे 
8.
महागणपति राजणगाँव,पुणे 

प्राचीनता
अष्टविनायकके ये सभी आठ मंदिर अत्यंत पुराने और प्राचीन हैं। इन सभी का विशेष उल्लेख गणेश और मुद्गल पुराण, जो हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों का समूह हैं, में किया गया है। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प बहुत सुंदर है, जिसे संभाल कर रखा गया है और समयानुसार उसका नवीनीकरण भी किया गया है। विशेष रूप से पेशवा शासन काल के दौरान, जो संयोग से गणपति के उत्कट भक्त थे, इन मंदिरों का बहुत ही अच्छी प्रकार से रख-रखाव किया गया। प्रत्येक हिन्दू के जीवन का एक उद्देश्य यह भी होता है कि अनंत आनंद और भाग्य प्राप्त करने के लिए वह अपने जीवनकाल में एक बार अष्टविनायकके आठ मंदिरों की यात्रा अवश्य कर ले। तो आइये अब इन आठ पीठों के बारे में थोड़ा विस्तार से भी जान लेते हैं। 


श्री मयूरेश्‍वर

ये पुणे से 80 किलोमीटर दूर मोरगांव में है, मयूरेश्‍वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं, इस मंदिर में चार द्वार हैं, इन द्वारों का अपना महत्व है. ऐसी मान्यता है कि ये चारों द्वार चारों युगों का वर्णन करते हैं, ये क्रमशः सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग के प्रतीक हैं, मंदिर के द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है, इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है, नंदी और मूषक दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में तैनात हैं, मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं, तथा उनकी सूंड़ बाएं हाथ की ओर है, श्री मयूरेश्‍वर की चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। 

क्या है मान्यता?
मान्यताओं के अनुसार मयूरेश्‍वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया गया था, गणेशजी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था, इसी कारण यहां स्थित गणेशजी को मयूरेश्‍वर कहा जाता है। 

श्री सिद्धिविनायक 

अष्टविनायक में दूसरे गणेशजी हैं सिद्धिविनायक, यह मंदिर पुणे से क़रीब 200 किलोमीटर दूर सिद्धटेक,अहमदनगर में है, यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है, पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है, मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ की यात्रा करनी होती है, यहां गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। 

क्या है मान्यता?
इस मंदिर को सिद्ध स्थान माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थीं। 

श्री बल्लालेश्‍वर 

अष्टविनायक में अगला मंदिर है बल्लालेश्‍वर मंदिर, यह मुंबई-पुणे हाइवे पर रायगढ़ जिले के पाली गांव में स्थित है, इस मंदिर का नाम भगवान गणेशजी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। 

क्या है मान्यता?
ऐसी मान्यता है कि सालों पहले बल्लाल नाम का एक लड़का, जो गणेशजी का परम भक्त था, एक दिन उसने पाली गांव में विशेष पूजा का आयोजन किया, कई दिनों तक लगातार पूजा चलती रही, जिससे वहां बैठे बच्चे अपने घर नहीं गए, ऐसे में उनके माता-पिता ने ग़ुस्से में आकर बल्लाल और भगवान गणेश की मूर्ति को जंगल में फेंक दिया, ऐसी हालत में भी बल्लाल गणेशजी का मंत्र जाप करना नहीं भूला, इससे गणेशजी उसे दर्शन देते हैं और उसके कहने पर सदा के लिए यहीं रुक जाते हैं। 

श्री वरदविनायक 

अष्टविनायक में चौथे गणेशजी हैं श्री वरदविनायक, यह मंदिर रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में स्थित है, यहां एक सुंदर पर्वतीय गांव है महाड़, इसी गांव में श्री वरदविनायक मंदिर है, इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है, जो कई वर्षों से जल रहा है। 

क्या है मान्यता?
लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां जो भक्त आता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। 

श्री चिंतामणि 

अष्टविनायक में पांचवें स्थान पर हैं चिंतामणि गणपति, यह मंदिर पुणे के हवेली क्षेत्र में स्थित है,यह पुणे से 25 किलोमीटर की दूरी पर है, भीम, मुला और मुथा तीनों नदियों का संगम आपको यहीं देखने को मिलेगा, यहां पर आपको अपार शांति की अनुभूति होगी। 

क्या है मान्यता?
ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी, यदि किसी भक्त का मन बहुत विचलित है, और जीवन में दुख ही दुख प्राप्त हो रहे हैं, तो इस मंदिर में आने पर सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। 

श्री गिरजात्मज 

अष्टविनायक में अगले गणपति हैं श्री गिरजात्मज, गिरजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश, यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, बौद्ध गुफाओं के बीच यह मंदिर है, इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है, मंदिर में जाने के लिए आपको क़रीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। 

क्या है मान्यता?
लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां पर आने मात्र से मन में चल रही उथल-पुथल और रिश्तों की कटुता ख़त्म हो जाती है, मन शांत हो जाता है। 

श्री विघ्नेश्‍वर 

अष्टविनायक में सातवें स्थान पर हैं विघ्नेश्‍वर गणपति, यह मंदिर पुणे से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यह कुकड़ी नदी के किनारे पर बना है, मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में है, मंदिर की कलाकृति देखने लायक है, दर्शन के बाद आप मंदिर के बड़े और भव्य परिसर का आनंद लेना न भूलें। 

क्या है मान्यता?
एक प्रचलित कथा के अनुसार विघ्नासुर नामक एक असुर था, जो संतों को प्रताड़ित करता था, भगवान गणेश ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध किया और सभी को कष्टों से मुक्ति दिलाई, तभी से यह मंदिर विघ्नेश्‍वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है, ऐसा माना जाता है कि चाहे कितने भी दुख क्यों न हों, विघ्नेश्‍वर के दर्शन मात्र से मन को शांति मिलती है। 

श्री महागणपति 

अष्टविनायक मंदिर के आठवें गणेशजी हैं महागणपति, यह मंदिर पुणे से 50 किलोमीटर की दूरी पर रंजनगांव में स्थित है, मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा की ओर है, जो बहुत विशाल और सुन्दर है, यहां की गणेशजी की प्रतिमा अद्भुत है. इसे माहोतक नाम से भी जाना जाता है। 

क्या है मान्यता?
प्रचलित मान्यता के अनुसार मंदिर की मूल मूर्ति तहखाने में छुपी हुई है, विदेशियों के आक्रमण के समय मूर्ति को पुजारियों ने तहखाने में छुपा दिया था। 

तो मित्रों यह थी हमारी आज की श्री देवाधिदेव महागणपतिजी के अष्टविनायक स्वरूपों की भक्तिमयी यात्रा, आशा है आपको यह जानकारी बेहद रोचक एवं आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत लगी होगी, आप सभी एक बार अवश्य अष्टविनायक यात्रा पर जाने का मन में निश्चय कर लें, अवश्य ही आपकी यह मनोकामना लम्बोदर गणेश पूर्ण करेंगे।

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