आदिशक्ति के नवस्वरूप


17 अक्टूबर, 2020 यानी आज से शारदीय नवरात्रि का महापर्व प्रारंभ हो गया है।नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ स्वरूपों को पूजा जाता है। माता दुर्गा के इन सभी नौ स्वरूपों का अपना अलग-अलग महत्व है। माता के प्रथम स्वरूप को शैलपुत्री, द्वितीय को ब्रह्मचारिणी, तृतीय को चंद्रघण्टा, चतुर्थ को कूष्माण्डा, पंचम को स्कन्दमाता, षष्ठम को कात्यायनी, सप्तम को कालरात्रि, अष्टम को महागौरी तथा नवम स्वरूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। आइये आज की इस नवरात्रि विशेष पोस्ट में माता आदिशक्ति के इन नौ अलौकिक स्वरूपों के विषय में विस्तार से जानते हैं।
शैलपुत्री
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।
मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह वृषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प धारण किए हुए हैं। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।
ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां
ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि
तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत
भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां
दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी
उपासना से मनुष्य में तप,
त्याग,
वैराग्य,
सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं की उपासना
की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में
अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
चंद्रघण्टा
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे
दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और
कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी
का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह
है। हमें चाहिए कि हम मन,
वचन,
कर्म एवं शरीर से शुद्ध होकर विधि−विधान के अनुसार, मां चंद्रघण्टा की
शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक
कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
कूष्माण्डा
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा
ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्रों में चौथे
दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए।
मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और
श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त
करके उसे सुख,
समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति
चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
स्कन्दमाता
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। भगवान स्कन्द अर्थात 'कुमार कार्तिकेय' की माता होने के कारण मां दुर्गा
के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्धि चक्र में स्थित रहता
है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन
देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का
शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की
समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है।
कात्यायनी
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन
की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा
हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम
से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। नवरात्रि के छठे दिन
इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है।
योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित
मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त
को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते
हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।
कालरात्रि
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का
स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं।
इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। नवरात्रि के सातवे दिन मां कालरात्रि की
पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए
ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का
मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों
का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।
महागौरी
मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन
महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से
भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
सिद्धिदात्री
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है
ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां
सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो
जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी
चाहिए।
मित्रों आइये इस नवरात्रि महापर्व में हम माँ दुर्गा के इन नौ दिव्य स्वरूपों का पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा के साथ पूजन करें तथा मां आदिशक्ति से विश्व के कल्याण,शांति एवं सौहाद्र के लिए प्रार्थना करें।
जगतजननी मां भवानी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतु अधिक से अधिक इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करें।
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Wah atyant sundar varnan maa ke sabhi roopon ka
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका ऐसे ही लाईक करें ताकि हम आपको ऐसी ही अच्छी अच्छी जानकारी देते रहें
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