शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

कौन अपना, कौन पराया? ; Who is yours, who is strange?





मैं बिस्तर से खड़ा हुआ......... 

अचानक सीने में तेज दर्द शुरू होने पर........ मुझे हार्ट की तक़लीफ़ तो नहीं है ?ऐसे विचार के साथ मैं ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ....... 

देखा तो मेरी पत्नि, पुत्र और पुत्री तीनो अपने-अपने मोबाइल में व्यस्त थे, मैंने पत्नी को सम्बोधित करते हुए कहा, "आरती मेरे सीने में आज रोज की अपेक्षा कुछ अधिक ही दर्द हो रहा है, एक बार डॉक्टर को दिखाकर आता हूँ, "ठीक है सम्भालकर जाना, और कुछ काम हो तो फ़ोन करना", बिना मेरी ओर एक बार भी देखे पत्नि ने मोबाइल में ही देखते-देखते जवाब दिया। 


मैं बाइक की चाबी लेकर पार्किंग एरिया में पंहुचा, मुझे बहुत घबराहट और बेचैनी महसूस हो रही थी तथा पसीना भी बहुत आ रहा था, मैं धीरे-धीरे अपनी बाइक के पास पंहुचा, बाइक के इग्निशन में  चाबी डाल कर चालू किया पर कुछ देर कोशिश करने के बाद भी मेरी "सेल्फ स्टार्ट" बाइक चालू नहीं हो रही थी।  


ऐसे समय में हमारे घर पर काम करने वाला अनिल साइकिल में आया, साइकिल को ताला मारते-मारते  उसने मेरी तरफ देखा और पूछा....... क्यों? साहब बाइक चालू नहीं हो रही है क्या ? 


मैंने कहा नहीं, आपकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है, और आपको इतना पसीना कैसे आ रहा है, उसने पूछा .........इस परिस्थिति में बाइक को किक मारके चालू करने की कोशिश ना कीजियेगा, मैं किक मारके आपकी बाइक चालू कर देता हूँ।  

उसने किक मारके बाइक को चालू कर दिया,फिर उसने  पूछा साहब आप अकेले जा रहें हैं? मैंने कहा हाँ, 
ऐसे में आपका अकेले जाना उचित नहीं है, चलिए मेरे पीछे बैठ जाइये...... मैंने उससे पूछा, तुम्हे बाइक चलानी आती है, उसने कहा चिंता मत कीजिये मेरे पास लाइसेंस भी है, आप बैठ जाइये।


कुछ ही देर में हम नजदीक के सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में थे........ अनिल दौड़कर अन्दर गया और एक व्हील चेयर ले कर लौटा, अभी आप चलने की कोशिश ना करें  इस चेयर पर बैठ जाइये।

उसके मोबाइल की रिंग बार बार बजने लगी........ मैं समझ गया हमारी बिल्डिंग में से सबके फ़ोन आ रहे होंगे, कि अभी तक पंहुचा कैसे नहीं ?

आखिर परेशान होकर उसने फ़ोन उठा ही लिया और किसी को जवाब दिया कि आज मैं नहीं आ सकूँगा। 



अनिल बिलकुल एक डॉक्टर की तरह व्यवहार कर रहा था....... शायद उसे बिना पूछे ही पता चल गया था, कि मुझे हार्ट की तकलीफ है। 

वह मुझे लिफ्ट में से व्हील चेयर पर बैठा कर आईसीयू  के अन्दर ले आया , वहां डॉक्टर्स की एक टीम तैयार थी, उन्होंने मेरी तकलीफ सुनी फिर कहा, तत्काल ही आपके सभी टेस्ट करने होंगे, आप एकदम सही समय पर यहाँ पंहुच गए हो, इस पर भी आपने व्हील चेयर का प्रयोग किया वो आपके लिए काफी फायदेमंद रहा। 


अब बिना किसी की राह देखे  तत्काल प्रभाव से हमे आपका उपचार शुरू कर देना चाहिए अन्यथा आपकी जान को खतरा हो सकता है, आपके हार्ट का ऑपरेशन करके सारे ब्लॉकेज दूर करने पड़ेंगे। 

इस फॉर्म पर आपके रिश्तेदार के हस्ताक्षर की जरुरत है कहते हुए डॉक्टर ने अनिल की ओर देखा, 

मैंने अनिल से पुछा, "बेटा तुम्हे हस्ताक्षर करने आते हैं ?"

उसने कहा साहब इतनी बड़ी जिम्मेदारी मुझे ना सौंपे। 

बेटा तेरी कोई जवाबदारी नहीं है, तेरे साथ मेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी बिना कुछ कहे तूने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है, वो जवाबदारी जो वास्तव में मेरे मेरे परिवार की थी। 

एक जवाबदारीऔर निभा दे बेटा, मैं नीचे लिखकर अपने हस्ताक्षर कर देता हूँ, कि मुझे कुछ होगा तो, उसकी पूरी जवाबदारी मेरी होगी।

और अनिल ने सिर्फ मेरे कहने पर उस फॉर्म पर हस्ताक्षर कर दिए। 

मैंने कहा मेरे घरवालों को फ़ोन लगाकर खबर कर दे, ठीक उसी समय मेरी पत्नी आरती का फ़ोन अनिल के फ़ोन पर आया, अनिल शांति से आरती को सुन रहा था। 

कुछ देर बार अनिल बोला, "मैडम आपको मेरी तनख्वाह से पैसे काटना है तो काट लेना, या फिर मुझे नौकरी से निकालना है तो निकाल देना, लेकिन अभी पहले आप हॉस्पिटल पहुँचिये","मैडम मैं साहब को हॉस्पिटल लेकर आया हूँ, उनके ऑपरेशन की तैयारी चल रही है, राह देखने का समय नहीं था"। 

मैंने पूछा, "बेटा घर से फ़ोन था"?

उसने कहा, "हाँ" 

मैंने मन ही मन कहा, "आरती तू किसकी तनख्वाह से पैसे काटना चाहती है, तू किसे नौकरी से निकालना चाहती है "?

मैंने नम आँखों से अनिल से कहा, "बेटा तू चिंता मत करना मैं एक समाज सेवी संस्था से जुड़ा हुआ हूँ जो बेघर बुजुर्गों को आसरा देती है, वहां तेरे जैसे निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले  व्यक्ति की अत्यंत आवश्यकता है, तेरा काम कपड़े और बर्तन धोने का नहीं है, तेरा काम तो समाज सेवा का है, और हाँ, वहां तुझे तनख्वाह भी मिलेगी, इसकी तू चिंता ना करना।

ऑपरेशन के बाद मुझे होश आया, मेरे सामने मेरा पूरा परिवार सर नीचे झुकाए खड़ा था, मैंने सजल नेत्रों से पूछा, "अनिल कहाँ है"?

मेरी पत्नी ने कहा, " वो अभी अभी छुट्टी लेकर अपने गाँव गया है, कह रहा था, उसके पिताजी का हार्ट अटैक से देहावसान हो गया है", पंद्रह दिन बाद लौटेगा।

अब मुझे समझ में आया, कि वो मुझमे स्वयं के पिता को देख रहा था , हे प्रभु आपने मुझे बचाकर उसके पिता की जान ले ली !!!!!

मेरा समस्त परिवार हाथ जोड़कर मूकदर्शक बनकर मुझसे क्षमा मांग रहा था। 

एक मोबाइल की आदत हमारे अपनों को हमसे कितना दूर कर देती है, यह मेरा परिवार देख रहा था। 

इतने में डॉक्टर ने आकर मुझसे पूछा, वो जो आपको यहाँ लेकर आये थे, उनसे आपका क्या रिश्ता है ?

मैंने कहा डॉक्टर साहब कुछ समबन्ध ऐसे होते हैं, जिनके नाम या गहराई तक ना जाया जाये तभी उनकी गरिमा बनी रहती है, मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा, कि संकट की इस घड़ी में वो किसी देवदूत की भांति आया था। 

मेरे पुत्र कुणाल ने मुझसे कहा, जो फ़र्ज़ हमारा था उसे अनिल को निभाना पड़ा, जो की हमारे लिए अत्यंत खेदजनक है, भविष्य में हमसे ऐसे गलती दोबारा नहीं होगी। 



बेटा इस दुनिया में जवाबदारी और सलाह केवल दूसरों को देने के लिए ही होती है, जब उसे निभाने का समय आता है तब लोग पीछे हट जाते हैं, मैंने कहा, और रही मोबाइल की बात, बेटा एक निर्जीव खिलौने ने...... जिन्दा खिलौनों को अपना गुलाम बना लिया है........ अब समय आ गया है इसके उपयोग को सिमित करने का अन्यथा परिवार, समाज और देश को इसके गंभीर परिणाम भुगतने और इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।

















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