मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

सकारात्मक सोच की शक्ति ; Power of positive thoughts


सकारात्मक सोच के बिना जिंदगी अधूरी है, सकारात्मक सोच की शक्ति से घोर अन्धकार को भी आशा की किरणों से रौशनी में बदला जा सकता है। हमारे विचारों पर हमारा स्वंय का नियंत्रण होता है, इसलिए यह हमें ही तय करना होता है कि हमें सकारात्मक सोचना है या नकारात्मक ।

हर विचार एक बीज है

हमारे पास दो तरह के बीज होते है सकारात्मक एंव नकारात्मक है, जो आगे चलकर हमारे दृष्टिकोण एंव व्यवहार रुपी पेड़ का निर्धारण करता है। हम जैसा सोचते है वैसा बन जाते है, इसलिए कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते है वैसा ही हमारा आचरण होता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रुपी जमीन में कौनसा बीज बोते है। थोड़ी सी चेतना एंव सावधानी से हम कांटेदार पेड़ को महकते फूलों के पेड़ में बदल सकते है। 
डेविड एंव गोलियथ की कहानी



बाइबिल की एक कहानी काफी प्रसिद्ध है। एक गाँव में गोलियथ नाम का एक ऱाक्षस था। उससे हर व्यक्ति डरता था एवं परेशान था। एक दिन डेविड नाम का भेंङ चराने वाला लङका उसी गाँव में आया जहाँ लोग राक्षस के आतंक से भयभीत थे। डेविड ने लोगों से कहा कि आप लोग इस राक्षस से लड़ते क्यों नही हो?
तब लोगों ने कहा – “वो इतना बड़ा है कि उसे मारा नही जा सकता
डेविड ने कहा – “आप सही कह रहे है कि वह राक्षस बहुत बड़ा है। लेकिन बात ये नही है कि बड़ा  होने की वजह से उसे मारा नही जा सकता, बल्कि हकीकत तो ये है कि वह इतना बड़ा है कि उस पर लगाया निशाना चूक ही नही सकता।
फिर डेविड ने उस राक्षस को गुलेल से मार दिया। राक्षस वही था, लेकिन डेविड की सोच अलग थी।

कौन से रंग का चश्मा पहना है?


जिस तरह काले रंग का चश्मा पहनने पर हमें सब कुछ काला और लाल रंग का चश्मा पहनने पर हमें सब कुछ लाल ही दिखाई देता है उसी प्रकार नकारात्मक सोच से हमें अपने चारों ओर निराशा, दुःख और असंतोष ही दिखाई देगा और सकारात्मक सोच से हमें आशा, खुशियाँ एंव संतोष ही नजर आएगा, यह हम पर निर्भर करता है, कि सकारात्मक चश्मे से इस दुनिया को देखते है, या नकारात्मक चश्मे से। अगर हमने सकारात्मक चश्मा पहना है तो हमें हर व्यक्ति अच्छा लगेगा और हम प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई खूबी ढूँढ ही लेंगे लेकिन अगर हमने नकारात्मक चश्मा पहना है तो हम बुराइयाँ खोजने वाले कीड़े बन जाएंगे।

नकारात्मकता  से सकारात्मकता  की ओर


सकारात्मकता की शुरुआत आशा और विश्वास से होती है। किसी जगह पर चारों ओर अँधेरा है और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा और वहां पर अगर हम एक छोटा सा दीपक जला देंगे तो उस दीपक में इतनी शक्ति है कि वह छोटा सा दीपक चारों ओर फैले अँधेरे को एक पल में दूर कर देगा।इसी तरह आशा की एक किरण सारे नकारात्मक विचारों को एक पल में मिटा सकती है। 
नकारात्मकता को नकारात्मकता समाप्त नहीं कर सकती, नकारात्मकता को तो केवल सकारात्मकता ही समाप्त कर सकती है।  इसीलिए जब भी कोई छोटा सा नकारात्मक विचार मन में आये उसे उसी पल सकारात्मक विचार में बदल देना चाहिए।
उदाहरण के लिए अगर किसी विद्यार्थी को परीक्षा से 20 दिन पहले अचानक ही यह विचार आता है कि वह इस बार परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाएगा तो उसके पास दो विकल्प है या तो वह इस विचार को बार-बार दोहराए और धीरे-धीरे नकारात्मक पौधे को एक पेड़ बना दे या फिर उसी पल इस नकारात्मक विचार को सकारात्मक विचार में बदल दे और सोचे कि कोई बात नहीं अभी भी परीक्षा में 20 दिन यानि 480 घंटे बाकि है और उसमें से वह 240 घंटे पूरे दृढ़ विश्वास के साथ मेहनत करेगा तो उसे उत्तीर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता। अगर वह नकारात्मक विचार को सकारात्मक विचार में उसी पल बदल दे और अपने सकारात्मक संकल्प को याद रखे तो निश्चित ही वह उत्तीर्ण होगा। 

सकारात्मक सोचना या न सोचना हमारे मन के नियंत्रण में है और हमारा मन हमारे नियन्त्रण में है| अगर हम अपने मन से नियंत्रण हटा लेंगे तो मन अपनी मर्जी करेगा और हमें पता भी नहीं चलेगा की कब हमारे मन में नकारात्मक पेड़ उग गए है। 

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