शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

पुरषोत्तम मास या अधिक मास माहात्म्य ; celebration of purushottam maas or adhik maas


वर्ष 2020 में 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर के मध्य है, पुरुषोत्तम मास या 
अधिक मास........भगवान् विष्णु करेंगे आपकी हर इच्छा पूर्ण 



क्यों आता है अधिक मास?

32 महीने, 16 दिन, 1 घंटा 36 मिनट के अंतराल से हर तीसरे साल अधिक मास आता है। ज्योतिष में चंद्रमास 354 दिन व सौरमास 365 दिन का होता है। इस कारण हर साल 11 दिन का अंतर आता है जो 3 साल में एक माह से कुछ ज्यादा होता है। चंद्र और सौर मास के अंतर को पूरा करने के लिए धर्म शास्त्रों में पुरुषोत्तम मास या अधिक मास की व्यवस्था की है।




क्यों विशेष है अधिक मास?

हिंदू धर्म में अधिक मास को बहुत ही पवित्र और पुण्य फल देने वाला माना गया है। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस महीने में भगवान पुरुषोत्तम की पूजा करने व श्रीमद्भागवत की कथाएं सुनने, मंत्र जाप, तप व तीर्थ यात्रा का भी बड़ा महत्व है। इस महीने में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। अधिक मास में विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते।

अधिक मास में सूर्य की संक्रान्ति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने के कारण इसे ʹमलमासʹ (मलिन मास) कहा गया। स्वामीरहित होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया। इससे लोग इसकी घोर निन्दा करने लगे।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः मैं इसे सर्वोपरि अपने तुल्य करता हूँ। सदगुण, कीर्ति, प्रभाव, षडैश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान देने का सामार्थ्य आदि जितने गुण सम्पन्न हैं, उन सबको मैंने इस मास को सौंप दिया।
अहमेते यथा लोके प्रथितः पुरुषोत्तमः।
तथायमपि लोकेषु प्रथितः पुरुषोत्तमः।।
इन गुणों के कारण जिस प्रकार मैं वेदों, लोकों और शास्त्रों में ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से विख्यात हूँ, उसी प्रकार यह मलमास भी भूतल पर ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से प्रसिद्ध होगा और मैं स्वयं इसका स्वामी हो गया हूँ।
इस प्रकार अधिक मास, मलमास ʹपुरुषोत्तम मासʹ के नाम से विख्यात हुआ।
भगवान कहते हैं- इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान (ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवत्स्मरण करते हुए किया गया स्नान), दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण तथा देवार्चन किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है। जो प्रमाद से इस मास को खाली बिता देते हैंउनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्रय, पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निंदित हो जाता है इसमें सन्देह नहीं।
सुगन्धित चंदन, दीप आदि से लक्ष्मीसहित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें। घंटा, मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चंदन से आरती करें। ये न हों तो रुई की बत्ती से ही आरती कर लें। इससे अनन्त फल की प्राप्ति होती है। चंदन, अक्षत और  पुष्पों के साथ ताँबे के पात्र में पानी रखकर भक्ति से प्रातःपूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें-
देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक।
गृहाणार्घ्यमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि।।
स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेमिततेजसे।
नमोस्तुते श्रियानन्त दयां कुरु ममोपरि।।
ʹहे देवदेव ! हे महादेव ! हे प्रलय और उत्पत्ति करने वाले ! हे देव मुझ पर कृपा करके इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिये। तुझ स्वयंभु के लिए नमस्कार तथा तुझ अमिततेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार। हे अनंत ! लक्ष्मी जी के साथ आप मुझ पर कृपा करें।ʹ
पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्रय, पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है। इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
विधिवत् सेवते यस्तु पुरुषोत्तममादरात्।
कुलं स्वकीयमुदधृत्य मामेवैष्ययत्यसंशयम्।।
प्रति तीसरे वर्ष में पुरुषोत्तम मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत, उपवास, पूजा आदि शुभ कर्म करता है, वह निःसन्देह अपने समस्त परिवार के साथ मेरे लोक में पहुँचकर मेरा सान्निध्य प्राप्त करता है।
इस माह में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप, सत्संग व सत्कथा-श्रवण, हरिकीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किये जाते हैं, उनका अक्षय फल होता है और व्रती के सम्पूर्ण अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। निष्काम भाव से किये जाने वाले अनुष्ठानों के लिए यह अत्यन्त श्रेष्ठ समय है। ʹदेवी भागवतʹ के अनुसार यदि दान आदि का सामर्थ्य न हो तो संतों-महापुरुषों की सेवा सर्वोत्तम है। इससे तीर्थस्नानादि के समान फल प्राप्त होता है।
इस मास में प्रातः स्नान, दान, तप, नियम, धर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा निःस्वार्थ नाम जप-गुरुमंत्र जप का अधिक महत्त्व है। इस माह में दीपकों का दान करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। दुःख शोकों का नाश होता है। वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है।
अधिक मास में आँवले और तिल का उबटन शरीर पर मलकर स्नान करना और आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना यह भगवान श्री पुरुषोत्तम को अतिशय प्रिय है, साथ ही स्वास्थ्यप्रद और प्रसन्ताप्रद भी है। यह व्रत करने वाले लोग बहुत पुण्यवान हो जाते हैं।
अधिक मास में वर्जित
इस मास में सभी सकाम कर्म एवं सकाम व्रत वर्जित हैं। जैसे कुएँ, बावली, तालाब और बाग आदि का आरम्भ तथा प्रतिष्ठा, नवविवाहित वधू का प्रवेश, देवताओं का स्थापन (देव प्रतिष्ठा), यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, नामकर्म, मकान बनाना, नये वस्त्र एवं अलंकार पहनना आदि।
अधिक मास में करने योग्य
प्राणघातक रोग आदि के निवृत्ति के लिए रूद्रजप आदि अनुष्ठान, दान व जप-कीर्तन आदि, पुत्रजन्म के कृत्य, पितृमरण के श्राद्धादि तथा गर्भाधान, पुंसवन जैसे संस्कार किये जा सकते हैं।



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